Shah jahan
History Of Shah jahan
शाहजहाँ को हम "शाह जहाँ" और "साहब -उद -दीन मुहमद खुर्रम" के नाम से भी जानते है इनका जन्म जोधपुर के शासक राजा उदयसिंघ की बेटी जगत गोसाई के गर्भ से {5 january 1592} को लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ था शाह जहाँ मुग़ल साम्राज्य के 5वे शासक और जहाँगीर के बेटे थेI जिन्होंने 1628 से 1658 तक शासन किया इनको मुग़ल शासक में से एक महान सासको में से जाना जाता है I
खुर्रम जहाँगीर का छोटा बेटा था ऐसा कहा जाता है की ये छल-बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी बना था खुर्रम कला का बहुत बड़ा प्रेमी था उसकी शादी केबल 20 साल की उम्र में नूरजहाँ के भाई आसफ़ खा की बेटी आरज़ूमन्द बानो से सन 1611 में हुआ था, जिनको हम मुमताज के नाम से भी जानते है
जिनको शाहजहां ने मलिका-ए-जमानी के उपाधि से भी नवाजा था,ऐसा कहा जाता है की एक बीमारी के कारण इनकी मृत्यु हो गयी 20 साल की उम्र में ही शाहजहां,जहाँगीर शासक का एक शक्तिसाली शासक के नाम से जाना जाने लगा,
शाहजहां के शासन काल में मुग़ल साम्राज्य की शान सौकत और चर्चा बहुत दूर दूर तक था शाहजहां के शासन काल का अधिकतम समय बहुत ही खुसी से गुजरा और उसके राज्ये में काफी खुशाली रही और उसके शासन काल में बिशाल और बहुत बड़े-बड़े भवनो का निर्माण किया गया,
Expansion of Empire...
जहाँगीर की शासन काल में मुगलो के अकर्मण से अहमदनगर की निगरानी करने बाले मालिक अम्बर की मृत्यु के बाद सुल्तान और मालिक अम्बर का बेटा फ़तह खाँ के बीच
आपसी झगडे के कारण शाहजहां के समय महाबत खाँ की दक्कन और दौलताबाद हांसिल करने में सफलता
मिली, 1633 में अहमदनगर का साम्राज्य मुग़ल साम्राज्य में मिला दिया गया और नाममात्र के शासक हुसैनशाह
को ग्वालियर के किले के करबास में डाल दिया गया, इस प्रकार निजामशाही वंश का अन्त्त हुआ.
हालाँकि शिबाजी के पिता शाहजी भोसले ने 1635 में मुर्तजा तृतीये की निजामशाही वंस का शासक बना के
चूँकि शाहजी की सहायता अप्रत्याछ रूप से गोलकुंडा और बीजापुर के सासको ने की थी, इसलिए शाहजहां
इनको दण्ड देने के उद्देश्य से दौलताबाद पहुंचा,गोलकुंडा के शासक 'अबदुल्लाशाह' के दर से शाहजहां से कयी शर्तो पर संधि कर ली
बादशाह को 6 लाख रूपये का बार्षिक कर देने को मंजूर कर किया
बादशाह के नाम से सिक्के ढलवाने और खुत्बा(उपदेश देना) पढ़वाने की बात मान ली
साथ ही बीजापुर के बिरुद्ध मुगलो की सैन्य कार्यवाही के सहयोग की बात मान ली
गोलकुंडा के शासक ने अपने बेटी की शादी औरंगजेब के बेटे मुहम्मद से कर दी
मीर जुमला (फारस का प्रसिद्द ब्यापारी ) जो गोलकोण्डा का बजीर था मुगलो के सेना में चला गया और उसने
शाहजहां को कोहिनूर हिरा भेट किया
All Rebellion in during rular of Shah Jahan...
ऐसा कहा जाता है की विद्रोह लगफग सभी मुग़ल सासको के शासनकाल में हुए थे, ऐसा ही कुछ विद्रोह शाहजहां का शासनकाल में भी हुए.
बुन्देलखण्ड का विद्रोह (1628-1636).
वीरसिंग बुंदेला का बेटा जुझार सिंह ने प्रजा पर कड़ाई कर बहुत सा धन इखट्टा कर लिया,इखट्टा धन की जांच ना करबाने के कारण साहजहां ने उस पर 1628 में अकर्मण कर दिया 1629 में जुझार सिंह ने शाहजहां के सामने आत्मसमर्पण कर माफ़ी मांगी,
लगफग 5 साल की मुग़ल बफादारी के बाद जुझार सिंह ने गोड़बना पर अकर्मण क्र बहा के शासक प्रेम नारायण की राजधानी चैरागढ़ पर कब्ज़ा जमा लिया,
ख़ानेजहाँ लोदी का विद्रोह (1628 -1631)
पीर खाँ उर्फ ख़ानेजहाँ लोदी एक अफगान सरदार था ऐसे शाहजहां के समय में मालवा की सूबेदारी मिली थी. 1629 में मुग़ल दरबार में सम्मान न मिलने के कारण खुद को आसुरछित समझ कर ख़ानेजहाँ अहमदनगर के शासक मुर्तजा निजामशाह के दरबार में पंहुचा, निजामशाह ने उसे 'बीर' की जागीरदारी इस शर्त्त पर दे दी की वह मुगलो के कब्ज्जे से अहमदनगर के छेत्र को बापस कर दे, 1629 में शाहजहाँ के दक्षिण पहुंच जाने के पर ख़ानेजहाँ को दक्षिणमें कोई सहायता ने मिल सकी और फिर निराश हो कर उसे उत्तर पश्चिम की ओर भागना पड़ा,आखिर कार बॉंदा जिले के 'सिहोदा' नामक जगह पर 'माधेसिंह' के हातो उसकी मृत्यु हो गयी इस तरह यह विद्रोह यही ख़तम हो गया.
पुर्तगालियों का विद्रोह (1632)
पुर्तगालियों के बढ़ती हुयी ताकत को कम करने के लिए शाहजहाँ ने 1623 में उनके महत्यपूर्ण ब्यापारिक केंद्र 'हुगली' पर कब्ज्जा कर लिया शाहजहाँ के समय में (1630-32) दक्कन और गुजरात में बहुत खतरानक अकाल पड़ा जिसका उल्लेख अंग्रेज ब्यापारी 'पीटर मुंडी' ने किया है,शाहजहां के शासनकाल में ही सिक्ख पंथ के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह से मुगलो का संघर्ष हुआ जिसमे सिक्खो की हार हुयी,
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Some Important work of shah Jahan..
शाहजहाँ ने सिजदा और पायबोस प्रथा को ख़तम कर दिया
इलाही सवंत के स्थान पर हिजरी सवंत प्रयोगा आरम्भ किया
मुग़लकालीन स्थापत्य और बस्तुकला की द्रष्ठि से शाहजहाँ ने कयी सारी महान इमारते बन बायीं जिसके कारण से इसके शासनकाल को को सुवर्ण काल कहा जाता है
Monuments...
लालकिला
लाल किला भारत के दिल्ली शहर का एक ऐतिहासिक किला है जो मुगल सम्राट शाहजहाँ ने 12 मई 1638 को लाल किले का निर्माण शुरू किया, जब उन्होंने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का
फैसला किया
Red Fort |
मोती मस्जिद
आगरा में मोती मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था। मुगल सम्राट शाहजहाँ के शासन के दौरान, कई वास्तुशिल्प चमत्कार बनाए गए थे, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध मोती मस्जिद भी है।
मोती मस्जिद ने मोती की तरह चमकने के बजह से इसे इपीटेट पर्ल मस्जिद भी कहा जाता है।
मोती मस्जिद |
जामा मस्जिद
जामा मस्जिद भारत में सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। इसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 1650 से 1656 के बीच दस लाख रुपये की लागत से बनवाया था। मस्जिद 1656 ई। में तीन महान द्वारों और लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर की पट्टियों से निर्मित दो 40 मीटर ऊँची मीनारों के साथ पूरी हुई।
Jama Masjid |
आंगन में 25000 से अधिक लोग रह सकते हैं। छत पर तीन गुंबद हैं जो दो मीनारों से घिरे हैं। फर्श पर, कुल 899 काले रंग की सीमाएं नमाज पढ़ने वालों के लिए चिह्नित हैं।
Battle for Successor
शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर उसके चारों पुत्र दारा शिकोह, शाहशुजा, औरंगज़ेब और मुराद बख़्श में उत्तराधिकार के लिए आपस में संघर्ष सुरु हो गया। शाहजहाँ की (मुमताज़ बेगम) द्वारा उत्पन्न 14 सन्तानों में 7 जीवित थीं, जिनमें 4 लड़के और 3 लड़कियाँ - जहान आरा, रौशन आरा और गोहन आरा थीं। जहान आरा ने दारा को, रोशन आरा ने औरंगज़ेब का एवं गोहन आरा ने मुराद का समर्थन किया।
शाहजहाँ के चारों पुत्रों में दारा सर्वाधिक उदार, शिक्षित एवं सभ्य था। शाहजहाँ ने दारा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और उसे 'शाहबुलन्द इकबाल' की उपाधि दी। उत्तराधिकारी की घोषणा से ही ‘उत्तराधिकार का युद्ध’ प्रारम्भ हुआ। युद्धों की इस श्रंखला का प्रथम युद्ध शाहशुजा एवं दारा के लड़के सुलेमान शिकोह तथा आमेर के राजा जयसिंह के बीच 24 फ़रवरी, 1658 ई. को बहादुरपुर में हुआ, इस संघर्ष में शाहशुजा पराजित हुआ। दूसरा युद्ध औरंगज़ेब एवं मुराद बख़्श तथा दारा की सेना, जिसका नेतृत्व महाराज जसवन्त सिंह एवं कासिम ख़ाँ कर रहे थे, के मध्य 25 अप्रैल, 1658 ई. को ‘धरमट’ नामक जगह पर हुआ, इसमें दारा की पराजय हुई। औरंगज़ेब ने इस विजय की स्मृति में ‘फ़तेहाबाद’ नामक नगर की स्थापना की। तीसरा युद्ध दारा एवं औरंगज़ेब के मध्य 8 जून, 1658 ई. को ‘सामूगढ़’ में हुआ। इसमें भी दारा को पराजय का सामना करना पड़ा। 5 जनवरी, 1659 को उत्तराधिकार का एक और युद्ध खजुवा नामक स्थान पर लड़ा गया, जिसमें जसवंत सिंह की भूमिका औरंगज़ेब के विरुद्ध थी, किन्तु औरंगज़ेब सफल हुआ। शाहजहाँ के बाद औरंगज़ेब ने मुग़ल साम्राज्य की बाग़ डोर संभाली।
Later Life
जब 1658 में शाहजहाँ बीमार हो गया, तो दारा शिकोह (मुमताज़ महल के सबसे बड़े बेटे) ने अपने पिता की जगह में रीजेंट की भूमिका निभाई, जिसने अपने भाइयों की दुश्मनी को और तेज़ कर दिया। रीजेंसी की अपनी मनसूबे को जानने के बाद, उनके छोटे भाइयों, शुजा, बंगाल के वायसराय, और गुजरात के वायसराय मुराद बख्श ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और अपने धन का दावा करने के लिए आगरा में मार्च किया। तीसरे बेटे औरंगजेब ने एक अच्छी तरह से प्रशिक्षित सेना इकट्ठा की और उसका मुख्य सेनापति बना।
उसने आगरा के पास दारा की सेना का सामना किया और उसे समुगढ़ की लड़ाई के दौरान हराया। हालाँकि शाहजहाँ अपनी बीमारी से पूरी तरह से उभर चुका था, औरंगजेब ने उसे शासन करने के लिए अक्षम घोषित कर दिया और उसे आगरा के किले में नजरबंद कर दिया।
शाहजहाँ 8 वर्ष तक आगरा के क़िले के शाहबुर्ज में क़ैद रहा। उसका अंतिम समय बड़े दु:ख और मानसिक क्लेश में बीता था। उस समय उसकी प्रिय पुत्री जहाँआरा उसकी सेवा के लिए साथ रही थी। शाहजहाँ ने उन वर्षों को अपने वैभवपूर्ण जीवन का स्मरण करते और ताजमहल को अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बिताये थे। अंत में जनवरी, सन् 1666 में उसकी मृत्यु हो गयी। उस समय उसकी आयु 74 वर्ष की थी। उसे उसकी प्रिय बेगम के पार्श्व में ताजमहल में ही दफ़नाया गया था।
Note >
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Fathre name - Jahangir
Mother name - Jagat Gosain
Born - 5 January 1592(Lahore)
Death - 22 January 1666(Agra Fort)
Son - Dara Shikoh, Shah Shuja, Aurangzeb, Murad Baksh Gauhar
Doughter - Ara Begum, Parhiz Ara Begum, Jahanara Begum
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